Kuber Chalisa

Kubera Chalisa Lyrics in Hindi

The Kubera Chalisa is a devotional hymn dedicated to Lord Kubera, who is known as the god of wealth in Hindu beliefs. People sing or recite the Kubera Chalisa to seek blessings for financial prosperity, happiness, and stability in their lives.

The word "Chalisa" means a set of 40 verses. Each verse in the Kubera Chalisa praises Lord Kubera and describes his qualities, powers, and ability to bless devotees with wealth and abundance. It also expresses gratitude and devotion to him.

Reciting the Kubera Chalisa is often done during special occasions, festivals, or pujas (prayers) dedicated to wealth and prosperity. Some people also recite it daily or on Fridays, which are considered auspicious for wealth-related prayers.

By reciting this Chalisa with faith and focus, devotees believe they can attract positive energy and remove obstacles in their path toward financial growth. It is also said to help reduce greed and promote the wise use of money.

Kubera Chalisa

॥ दोहा ॥

जैसे अटल हिमालय,
और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पे,
अविचल खड़े कुबेर ॥
विघ्न हरण मंगल करण,
सुनो शरणागत की तेरे ।
भक्त हेतु वितरण करो,
धन माया के ढेर ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री कुबेर भंडारी ।
धन माया के तुम अधिकारी ॥

तप तेज पुंज निर्भय भय हरी ।
पवन वेग सम सम तनु बलधारी ॥

स्वर्ग द्वार की करें पहरेदारी ।
सेवक इंद्र देव के आज्ञाकारी ॥

यक्ष-यक्षिणी की है सेना भारी ।
सेनापति बने युद्ध में धनुधारी ॥

महायोद्धा बन शस्त्र धारण करें ।
युद्ध करें शत्रु को मारें ॥

सदा विजयी कभी ना हारें ।
भक्त जनों के संकट तारें ॥

प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।
पुलस्ति वंश के जन्म विख्याता ॥

विश्रवा पिता इडवीदा जी माता ।
विभीषण भक्त आपके भ्राता ॥

शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।
घोर तपस्या करी तन को सुखाया ॥

शिव वरदान मिले देवत्व पाया ।
अमृत पान करी अमर हुई काया ॥

धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।
देवी देवता सब फिरें साथ में ॥

पीतांबर वस्त्र पहने गात में ।
बल शक्ति पूरी यक्ष जात में ॥

स्वर्ण सिंहासन आप विराजें ।
त्रिशूल गदा हाथ में सजाएं ॥

शंख मृदंग नगाड़े बजाएं ।
गंधर्व राग मधुर स्वर गाएं ॥

चौंसठ योगिनी मंगल गाएं ।
ऋद्धि-सिद्धि नित भोग लगाएं ॥

दास दासी सिर छत्र फिराएं ।
यक्ष-यक्षिणी मिल चंवर डुलाएं ॥

ऋषियों में जैसे परशुराम बलि हैं ।
देवों में जैसे हनुमान बलि हैं ॥

पुरुषों में जैसे भीम बलि हैं ।
यक्षों में ऐसे ही कुबेर बलि हैं ॥

भक्तों में जैसे प्रह्लाद बड़े हैं ।
पक्षियों में जैसे गरुड़ बड़े हैं ॥

नागों में जैसे शेष बड़े हैं ।
वैसे ही भक्त कुबेर बड़े हैं ॥

कंधे धनुष हाथ में भाला ।
गले फूलों की पहनी माला ॥

स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाल ।
दूर-दूर तक हो उजाला ॥

कुबेर देव को जो मन में धरे ।
सदा विजय हो, कभी ना हरे ॥

बिगड़े काम बन जाएं सारे ।
अन्न-धन के रहें भरे भंडारे ॥

कुबेर गरीब को आप उभारें ।
कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारें ॥

कुबेर भक्त के संकट तारें ।
कुबेर शत्रु को क्षण में मारें ॥

शीघ्र धनी जो होना चाहे ।
क्यों नहीं यक्ष कुबेर मनाएं ॥

यह पाठ जो पढ़े पढ़ाएं ।
दिन दुगुना व्यापार बढ़ाएं ॥

भूत-प्रेत को कुबेर भगाएं ।
अड़े काम को कुबेर बनाएं ॥

रोग शोक को कुबेर नाशाएं ।
कलंक कोढ़ को कुबेर हटाएं ॥

कुबेर चढ़े को और चढ़ा दे ।
कुबेर गिरे को पुनः उठा दे ॥

कुबेर भाग्य को तुरन्त जगा दे ।
कुबेर भूले को राह बता दे ॥

प्यासे की प्यास कुबेर बुझा दे ।
भूखे की भूख कुबेर मिटा दे ॥

रोगी का रोग कुबेर घटा दे ।
दुखिया का दुख कुबेर छूटा दे ॥

बांझ की गोद कुबेर भरा दे ।
कारोबार को कुबेर बढ़ा दे ॥

कारागार से कुबेर छुड़ा दे ।
चोर-ठगों से कुबेर बचा दे ॥

कोर्ट केस में कुबेर जितवाएं ।
जो कुबेर को मन में ध्यावें ॥

चुनाव में जीत कुबेर करावें ।
मंत्री पद पर कुबेर बिठावें ॥

पाठ करे जो नित मन लायें ।
उसकी कला हो सदा सवायें ॥

जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।
उसका जीवन चले सुखदायी ॥

जो कुबेर का पाठ करवाए ।
उसका बेड़ा पार लगवाए ॥

उजड़े घर को पुनः बसवाएं ।
शत्रु को भी मित्र बनवाएं ॥

सहस्त्र पुस्तक जो दान कराएं ।
सब सुख भोग पदार्थ पाएं ॥

प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाएं ।
मानस परिवार कुबेर कीर्ति गाएं ॥

॥ दोहा ॥

शिव भक्तों में अग्रणी,
श्री यक्षराज कुबेर ।
हृदय में ज्ञान प्रकाश भर,
कर दो दूर अंधेर ॥

कर दो दूर अंधेर अब,
जरा करो ना देर ।
शरण पड़ा हूं आपकी,
दया की दृष्टि फेर ॥

नित्य नियम कर प्रातः ही,
पाठ कराऊं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठी हेमंत ऋतु,
संवत चौसठ जान ।
स्तुति चालीसा शिवही,
पूर्ण कीन कल्याण ॥